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Thursday, June 10, 2010

संसाधनों के साथ जागरूकता जरूरी - रंजना बघेल

 कुपोषण से लड़ने के लिये संयुक्त अभियान की जरूरत
कुपोषण मिटाने की कार्ययोजना बनाने के लिये आज यहां एक संयुक्त कार्यशाला हुई। कार्यशाला में शिरकत कर रहे विषय विशेषज्ञों की आम राय थी कि कुपोषण को समाप्त करने के लिये एक संयुक्त रणनीति बनाने की जरूरत है जिसमें समाज सरकार और स्वयंसेवी संगठन की भूमिका महत्वपूर्ण हो। कार्यशाला का शुभारंभ महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्रीमती रंजना बघेल ने किया।

 उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश से कुपोषण समाप्त करने के लिये संसाधनों के साथ सबसे ज्यादा जरूरी है लोगों में जागरूकता लाने की। इस सत्र में वेलिड इंटरनेशनल यू.के. के डॉ. स्टीव्ह कॉलिन्स ने कुपोषण के प्रभावों से लड़ने की रणनीति के बारे में प्रस्तुतिकरण किया।

इस संयुक्त कार्यशाला की आधारभूमि मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की प्रदेश से कुपोषण से मुक्त कराने के लिये गठित अटल बाल आरोग्य मिशन है। कार्यशाला में होने वाले विमर्श एवं निष्कर्ष मिशन के कार्ययोजना के प्रमुख कारक होंगे। कार्यशाला का आयोजन संयुक्त रूप से महिला बाल विकास एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा किया गया है।

प्रारंभ में कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्रीमती रंजना बघेल ने कहा कि देश के अन्य राज्यों के साथ-साथ मध्यप्रदेश में भी कुपोषण से ग्रस्त बच्चों की समस्या विद्यमान है। उन्होंने कहा कि समाज में जागरूकता लाकर ही कुपोषण जैसी गंभीर समस्या का निदान किया जा सकता है। 

जनजागरूकता के बगैर सफलता संभव नहीं है। श्रीमती बघेल ने कहा कि कार्यशाला के इस आयोजन से हमें मध्यप्रदेश को कुपोषण राहित राज्य बनाने की दिशा में विशेषज्ञों का मार्गदर्शन मिलेगा और इस गंभीर चुनौती से निपटने के लिये बेहतर रणनीति बनाकर इस समस्या का निदान किया जा सकेगा। श्रीमती बघेल ने बताया कि प्रदेश सरकार ने जनजागरूकता के उद्देश्य से और खासतौर से गर्भवती माताओं के बेहतर स्वास्थ्य की दृष्टि से मंगल दिवस और गृह भेंट जैसे कार्यक्रम शुरू किये हैं। 

वहीं आंगनवाड़ियों के कामकाज को सुचारू और आदर्श बनाने के प्रयास जारी हैं। उन्होंने कहा कि कुपोषण के निवारण के लिये बनाई गई कार्ययोजनाओं को मैदानी स्तर तक फोकस कर उसका सुदृढ़ क्रियान्वयन किया जाना आवश्यक है तभी प्रदेश से हम कुपोषण के कलंक को मिटा सकने में सफल हो सकेंगे। 

श्रीमती बघेल ने इस दौरान प्रदेश में संचालित जननी एक्सप्रेस और जननी स्वास्थ्य सुरक्षा योजनाओं से मिली सफलताओं की भी विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने विशेषकर प्रदेश के आदिवासी जिलों में पर्याप्त रोजगार की सुलभता के लिये संबंधित विभागों के साथ-साथ महिला एवं बाल विकास तथा स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता जताई।

इस अवसर पर अपने संबोधन में मुख्य सचिव श्री अवनि वैश्य ने कहा कि यह एक विसंगति है कि गोदामों में अनाज के भंडार हैं लेकिन दूसरी ओर बच्चों में गंभीर कुपोषण है। आज इस पर चिंतन की आवश्यकता है कि कैसे हम इस विसंगति को दूर करें। उन्होंने कहा कि हमें कुपोषण से हुई मृत्यु के आँकड़ों से परे रहकर यह संकल्प लेना होगा कि प्रदेश में कुपोषण की वजह से एक भी बच्चा मृत्यु का शिकार न हो। 

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार कुपोषण की समस्या के निदान के लिये दृढ़संकल्पित है और इस उद्देश्य से धन और साधन सुविधाओं की कमी आड़े नहीं आने दी जायेगी। मुख्य सचिव ने कहा कि प्रदेश में कुपोषण की समस्या के निवारण के लिये विकेन्द्रीकृत रणनीति तैयार करना आवश्यक है। इस उद्देश्य से स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार जिला कलेक्टर अपने-अपने जिलों की रणनीति तैयार करें। 

इसके लिये उन्हें विशेषज्ञों, साधन-सुविधाओं और अमले की जो भी जरूरत होगी वह राज्य सरकार द्वारा प्राथमिकतापूर्वक सुलभ कराई जायेगी। मुख्य सचिव श्री अवनि वैश्य ने कार्यशाला के आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुये उम्मीद जताई कि इस आयोजन से निकले निष्कर्षों के जरिए हम इस गंभीर चुनौति का सफलतापूर्वक निदान करने में कामयाब हो सकेंगे।

कार्यशाला में प्रमुख सचिव महिला एवं बाल विकास श्रीमती लवलीन ककड़ ने कहा कि अन्य राज्यों की तुलना में मध्यप्रदेश में कुपोषण ग्रस्त बच्चों की समस्या अधिक है अत: अन्य राज्यों की तुलना में केन्द्र सरकार द्वारा प्रदेश को विशेष रूप से मदद और साधन-सुविधाएं सुलभ कराई जायें इसके लिये विशेष प्रावधान जरूरी है। 

उन्होंने कहा कि प्रदेश में वर्ष 1975 से आईसीडीएस कार्यक्रम संचालित है। इसके बावजूद प्रदेश में कुपोषण जैसी समस्या का बने रहना यह दर्शाता है कि समाज में जागरूकता का अभाव है और इस दिशा में हमें समन्वित प्रयास करने होंगे।

सचिव लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण तथा गैस राहत श्री एस.आर. मोहंती ने मध्यप्रदेश में बाल स्वास्थ्य के परिदृश्य से अवगत कराते हुये कहा कि दुनिया के जिन पाँच देशों में कुपोषण की समस्या अत्याधिक है उनमें हमारा देश भारत भी शामिल है। 

हमारे देश में मध्यप्रदेश भी उन राज्यों में से हैं जहां कुपोषण के विरूद्ध संघर्ष के लिये समन्वित प्रयास हो रहे हैं। प्रदेश में इस समस्या के समाधान की दिशा में स्वयंसेवी संगठनों ने भी अपना हाथ बढ़ाया है तथा हाल ही में झाबुआ जिले के मेघ नगर में ऐसी ही एक संस्था को पोषण पुनर्वास केन्द्र (एनसीआर) के संचालन की जिम्मेदारी दी गई है।

श्री मोहंती ने बताया कि प्रदेश के जिन चार जिलों में बच्चों के कुपोषणग्रस्त होने के मामले पाये गये हैं वहां नियमित टीकाकरण का सघन अभियान चलाया जा रहा है और नवजात शिशुओं की सुरक्षा और देखभाल विशेष रूप से की जा रही है। इस उद्देश्य से आशा और एएनएम को नवजात शिशुओं की देखभाल का विशेष प्रशिक्षण प्रदान किया गया है।

कार्यशाला के प्रारंभ में संचालक महिला एवं बाल विकास श्री अनुपम राजन ने देश-विदेश के विशेषज्ञों की इस कार्यशाला के आयोजन के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुये कहा कि सभी के अनुभवों और विचारों के आधार पर प्रदेश में कुपोषण समस्या के निदान के लिये समुदाय आधारित प्रबंधन प्रणाली स्थापित करने में मदद मिल सकेगी। 

वेलिड इंटरनेशलन यू.के. से आये डॉ. स्टीव्ह कॉलिन्स ने सुडान, इथोपिया, मालवी एवं नाइजीरिया में कुपोषण को समाप्त करने के लिये अपनाई गई रणनीति को रेखांकित करते हुये कहा कि यह जरूरी है कि इस अभियान में जागरूकता, समझ और भागीदारी के साथ काम किया जाये।

यूनीसेफ दिल्ली से आये डॉ. मोहम्मद ओहया ने भी गंभीर कुपोषण प्रबंधन के लिये अपनाई गई सफल रणनीति का उल्लेख किया। उद्घाटन सत्र के समापन अवसर पर मध्यप्रदेश टास्ट के डिप्टी टीम लीडर श्री सचदेव ने कार्यक्रम का संचालन एवं आभार प्रदर्शन किया।


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