सागर।PTI-भाषा ! कामशक्ति बढ़ाने व यौन जीवन को खुशहाल बनाने का दावा करने वाली दवाओं का बाजार दुनिया भर में तेजी से फैलता जा रहा है। इसमें से आधे से कुछ कम हिस्सा जड़ी-बूटी आधारित दवाओं का है।
वैज्ञानिक प्रमाणन के अभाव में भारत की आयुर्वेदिक दवाएं इस बाजार में अपना जलवा नहीं दिखा पा रही हैं, लेकिन सागर विश्वविद्यालय में चल रहा शोध कार्य भारत को इस बाजार का सिरमौर बनने की राह दिखा सकता है।
डा. हरिसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के फार्मेसी विभाग के प्रोफेसर विनोद दीक्षित ने बताया कि आयुर्वेद में जीवन में यौवन की उमंग-तरंग को बरकरार रखने के लिए वाजीकरण रसायन के सेवन को जरूरी बताया गया है। ऐसे रसायनों के सेवन से शरीर में वाजी यानी अश्व के समान ताकत पैदा हो सकती है।
उन्होंने बताया कि हालांकि बाजार में ऐसे रसायनों को कामशक्ति बढ़ाने व यौन जीवन को खुशहाल बनाने का दावा करने वाली दवाओं के रूप में बेचा जा रहा है, लेकिन वैज्ञानिक प्रमाणीकरण के अभाव में ए दवाएं देशी व विदेशी बाजार में अपेक्षित लोकप्रियता हासिल नहीं कर पा रही हैं। हमारा शोध इसी कमी को पूरा करने की दिशा में है और यह अपनी तरह का पहला शोध है।
प्रो. दीक्षित के निर्देशन में वाजीकरण रसायन के फाइटोकेमिकल एवं फार्मोकोलाजिकल प्रभाव विषय पर शोध कर रहे छात्र नागेन्द्र सिंह चौहान ने बताया कि फिलहाल उनका शोध सफेद मूसली, ताल मखाना, अकरकरा, साजन मिश्री, साजन पंजा व शिवलिंगी नामक औषधीय पौधों पर केन्द्रित है।
चौहान ने बताया कि अब तक के शोध निष्कर्ष व चूहों पर किए गए प्रयोगों से यह पता चला है कि इन औषधीय घटकों में मानव शरीर के यौवन काल की उमंग-तरंग को लंबे समय तक बरकरार रखने की अद्भुत ताकत है। उन्होंने कहा कि भले ही इन पौधों से बनी दवाओं को कामशक्ति बढ़ाने व यौन जीवन को खुशहाल बनाने वाला बताकर बेचा जाता है परंतु ए जड़ी-बूटियां पूरे शरीर को सेहतमंद बनाने का काम करती हैं।
हाल ही में स्विटजरलैंड में आयोजित 57वीं इंटरनेशनल कांग्रेस एंड एनुअल मीटिंग आफ द सोसायटी फार मेडिसिनल प्लांट ऐंड नेचुरल प्रोडक्ट रिसर्च में 87 देशों से आए वैज्ञानिकों व शोधार्थियों के बीच सागर फार्मेसी विभाग के शोध छात्र नागेन्द्र के काम को काफी सराहा गया। उनके शोध पत्र को सर्वेश्रेष्ठ शोध प्रस्तुति का अवार्ड भी दिया गया। साथ ही उन्हें स्विटजरलैंड आने-जाने का व्यय-भत्ता भी दिया गया।
इसी शोध कार्य पर नेशनल फेलोशिप हासिल करने वाले चौहान ने बताया कि विभिन्न वाजीकरण रसायनों को मिलाकर एक नई औषधि की खोज की गई है, जिसका चूहों पर भी सफल प्रयोग किया जा चुका है व अगले चरण में मनुष्यों पर इसका प्रयोग होगा। उन्होने कहा कि इंसानों में इन रसायनों का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं के रूप में हजारों साल पहले से ही होता चला आ रहा है। नई ईजाद की गई दवा को पेटेंट कराने के लिए भी कोशिश चल रही है।
शोध कार्य के निदेशक प्रो. दीक्षित ने बताया कि वियाग्रा जैसी एलोपैथिक कामोत्तेजक दवाएं शरीर पर तेजी से मगर कुछ ही समय तक अपना असर दिखा पाती हैं, जबकि वाजीकरण रसायन शरीर की पूरी कार्यप्रणाली में सुधार लाने के तहत ही काम शक्ति व यौन व्यवहार को बेहतर बनाते हैं। उनका असर लंबे समय तक बरकरार रहता है और उनका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ता। असल में आयुर्वेद महज कामोत्तेजना बढ़ाने के लिए नहीं वरन संतुलित जीवन जीने व अच्छी संतानें पैदा करने के लिए इन रसायनों के सेवन की हिमायत करता है।
इसी सिलसिले में शोध छात्र चौहान ने बताया कि रसायनों के सेवन के बाद चूहों के केवल सेक्स हारमोन के स्त्राव में ही नही बल्कि शुक्राणुओं की संख्या, उनके जीवन काल व गतिविधियों में भी वृद्धि देखी गई। ए रसायन यौन व्यवहार के नियंत्रण में सहायक स्नायुतंत्र व रिसाव ग्रंथियों की कार्यप्रणाली पर भी सकारात्मक असर डालते हैं। इन दवाओं के सेवन से स्नायु तंत्र पर होने वाले प्रभावों का अध्ययन होना बाकी है लेकिन रिसाव ग्रंथियों पर पड़ने वाले प्रभाव की पुष्टि हो चुकी है।
शोध की अहमियत के बारे में विश्वविद्यालय के फार्मेसी विभाग के प्रो. दीक्षित ने बताया कि आयुर्वेदिक के वाजीकरण रसायनों के वैज्ञानिक प्रमाणीकरण का अभी तक कोई उल्लेख नहीं है। यह शोध जड़ी-बूटी आधारित दवाओं के विश्व बाजार में भारत की आयुष दवाओं के लिए सफलता के द्वार खोल सकता है।
प्रो. दीक्षित के निर्देशन में वाजीकरण रसायन के फाइटोकेमिकल एवं फार्मोकोलाजिकल प्रभाव विषय पर शोध कर रहे छात्र नागेन्द्र सिंह चौहान ने बताया कि फिलहाल उनका शोध सफेद मूसली, ताल मखाना, अकरकरा, साजन मिश्री, साजन पंजा व शिवलिंगी नामक औषधीय पौधों पर केन्द्रित है।
चौहान ने बताया कि अब तक के शोध निष्कर्ष व चूहों पर किए गए प्रयोगों से यह पता चला है कि इन औषधीय घटकों में मानव शरीर के यौवन काल की उमंग-तरंग को लंबे समय तक बरकरार रखने की अद्भुत ताकत है। उन्होंने कहा कि भले ही इन पौधों से बनी दवाओं को कामशक्ति बढ़ाने व यौन जीवन को खुशहाल बनाने वाला बताकर बेचा जाता है परंतु ए जड़ी-बूटियां पूरे शरीर को सेहतमंद बनाने का काम करती हैं।
हाल ही में स्विटजरलैंड में आयोजित 57वीं इंटरनेशनल कांग्रेस एंड एनुअल मीटिंग आफ द सोसायटी फार मेडिसिनल प्लांट ऐंड नेचुरल प्रोडक्ट रिसर्च में 87 देशों से आए वैज्ञानिकों व शोधार्थियों के बीच सागर फार्मेसी विभाग के शोध छात्र नागेन्द्र के काम को काफी सराहा गया। उनके शोध पत्र को सर्वेश्रेष्ठ शोध प्रस्तुति का अवार्ड भी दिया गया। साथ ही उन्हें स्विटजरलैंड आने-जाने का व्यय-भत्ता भी दिया गया।
इसी शोध कार्य पर नेशनल फेलोशिप हासिल करने वाले चौहान ने बताया कि विभिन्न वाजीकरण रसायनों को मिलाकर एक नई औषधि की खोज की गई है, जिसका चूहों पर भी सफल प्रयोग किया जा चुका है व अगले चरण में मनुष्यों पर इसका प्रयोग होगा। उन्होने कहा कि इंसानों में इन रसायनों का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं के रूप में हजारों साल पहले से ही होता चला आ रहा है। नई ईजाद की गई दवा को पेटेंट कराने के लिए भी कोशिश चल रही है।
शोध कार्य के निदेशक प्रो. दीक्षित ने बताया कि वियाग्रा जैसी एलोपैथिक कामोत्तेजक दवाएं शरीर पर तेजी से मगर कुछ ही समय तक अपना असर दिखा पाती हैं, जबकि वाजीकरण रसायन शरीर की पूरी कार्यप्रणाली में सुधार लाने के तहत ही काम शक्ति व यौन व्यवहार को बेहतर बनाते हैं। उनका असर लंबे समय तक बरकरार रहता है और उनका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ता। असल में आयुर्वेद महज कामोत्तेजना बढ़ाने के लिए नहीं वरन संतुलित जीवन जीने व अच्छी संतानें पैदा करने के लिए इन रसायनों के सेवन की हिमायत करता है।
इसी सिलसिले में शोध छात्र चौहान ने बताया कि रसायनों के सेवन के बाद चूहों के केवल सेक्स हारमोन के स्त्राव में ही नही बल्कि शुक्राणुओं की संख्या, उनके जीवन काल व गतिविधियों में भी वृद्धि देखी गई। ए रसायन यौन व्यवहार के नियंत्रण में सहायक स्नायुतंत्र व रिसाव ग्रंथियों की कार्यप्रणाली पर भी सकारात्मक असर डालते हैं। इन दवाओं के सेवन से स्नायु तंत्र पर होने वाले प्रभावों का अध्ययन होना बाकी है लेकिन रिसाव ग्रंथियों पर पड़ने वाले प्रभाव की पुष्टि हो चुकी है।
शोध की अहमियत के बारे में विश्वविद्यालय के फार्मेसी विभाग के प्रो. दीक्षित ने बताया कि आयुर्वेदिक के वाजीकरण रसायनों के वैज्ञानिक प्रमाणीकरण का अभी तक कोई उल्लेख नहीं है। यह शोध जड़ी-बूटी आधारित दवाओं के विश्व बाजार में भारत की आयुष दवाओं के लिए सफलता के द्वार खोल सकता है।
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